Such language is unacceptable in public life

Editorial: सार्वजनिक जीवन में ऐसी भाषा अस्वीकार्य, माफी नाकाफी

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Such language is unacceptable in public life

Such language is unacceptable in public life बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश यादव का राज्य विधानसभा में दिया गया भाषण देश में इस बहस को जन्म दे रहा है कि सोशल मीडिया के जमाने में आखिर आम जनता से लेकर खास जनता तक की भाषा इतनी अमर्यादित क्यों हो गई है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक उच्च शिक्षित राजनेता हैं, वे लंबे समय से देश की राजनीति में हैं और इससे पहले उनके संबंध में ऐसा कुछ भी नहीं घटा है, जोकि समाज में अनुचित कहा जाए। लेकिन जनसंख्या नियंत्रण पर बोलते हुए उनके शब्द जिस प्रकार से अनियंत्रित हुए हैं, वे बेहद अनावश्यक और अमर्यादित हैं। इस मामले में उन्होंने सदन के अंदर और बाहर माफी मांगी है, लेकिन अब तीर जब कमान से छूट चुका है तो फिर कितनी भी माफी मांगी जाए, यह नाकाफी ही कही जाएगी। होना तो यह चाहिए था कि मुख्यमंत्री अपनी बात को संयत और सूझबूझ के साथ सदन में रखते और इसका कुछ प्रभाव सामने आता। लेकिन गली-कूचों में जिस प्रकार से छिछोरे और असामाजिक तत्व ऐसी बातें और भाषा का प्रयोग करते हैं, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ठेठ उसी तरीके से अपनी बात सदन में रखी। यह कितना विचित्र है कि एक मुख्यमंत्री के बयान को टीवी पर दिखाते हुए न्यूज चैनलों को बार-बार बीप का इस्तेमाल करना पड़ रहा है।

सोशल मीडिया पर आजकल इतने गंवार और असभ्य तौर-तरीकों वाले कारनामे हो रहे हैं, जिन्हें देखकर शर्म और हैरानी होती है। इंटरनेट ने कमाई का एक नया जरिया प्रदान कर दिया है और इसके जरिये लोग हर वह अभद्र कार्य करने में जुटे हैं, जोकि दूसरों को आकर्षित कर सके। अब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सदन में बयान को सुनकर भी कुछ ऐसा ही लगता है, जैसे कि अपनी टीआरपी को बढ़ाने के लिए उन्होंने कुछ अलग करने की सोची। बिहार में जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है और रोजगार के संसाधन सीमित हो रहे हैं। राज्य में सरकारी नौकरियां नहीं हैं और युवा अपराध की तरफ बढ़ रहे हैं। बिहार वह प्रदेश भी है, जोकि सभ्यता और संस्कृति का वाहक होता था, तक्षशिला जैसा वैश्विक शिक्षण संस्थान यहीं होता था और महान विचारक एवं रणनीतिकार चाणक्य इसकी धरती पर अवतरित हुए थे, जिन्होंने चंद्रगुप्त मौर्य के जरिये मौर्य साम्राज्य की स्थापना की।

समझ नहीं आता कि बिहार आज के समय में ऐसे हालात में कैसे पहुंच गया है। यह कितना दुखद है कि राज्य में शिक्षा का स्तर नीचे गया है और अपराध का बोलबाला बढ़ता रहा है। अपहरण और गंगाजल जैसी फिल्मों की पृष्ठभूमि भी बिहार ही है। राज्य की राजनीति में कहीं ईमानदारी नजर नहीं आती और बदहाल प्रदेश के भले के लिए सरकार केंद्र के सामने हाथ फैलाए खड़ी नजर आती है। राज्य में उद्योग-धंधों का बुरा हाल है और कोई भी बड़ा उद्यमी यहां अपने उद्योग नहीं लगाना चाहता, इसकी वजह प्रदेश में असुरक्षा का माहौल होना है। जिस समय सेना में अग्निवीर योजना लागू की गई, तब इसके खिलाफ उपद्रव की शुरुआत बिहार से ही हुई थी।

 गौरतलब है कि देश में यौन शिक्षा की बात बहुत लंबे समय से हो रही है। एक समय वह भी था, जब इसकी जरूरत समझी जाती थी कि बच्चों और युवाओं के लिए ऐसा कोई पाठ हो। हालांकि बाद में इसकी जरूरत खत्म हो गई लेकिन कहा यह गया कि बढ़ते बच्चों, किशोरों को अपनी शारीरिक बदलावों के संबंध में जागरूक किया जाए और मानसिक परिवर्तनों पर बात हो। आज का किशोर एवं युवा काफी हद तक इन बातों को समझ चुका है। वैसे भी एक मुख्यमंत्री इसके विशेषज्ञ नहीं हो सकते कि वे सदन में खड़े होकर ऐसी भाषा में एक-एक चीज के बारे में बात करें। किसी अनपढ़ व्यक्ति पर भी इस प्रकार की भाषा के प्रयोग का आरोप नहीं लगा सकते, फिर नीतीश कुमार तो उच्च शिक्षा प्राप्त हैं। कहा जा रहा है कि उनका मंतव्य गलत नहीं था, बेशक ऐसा है। वे यही कह रहे थे कि आज के समाज में लोगों की मानसिक प्रवृत्ति कैसी हो गई है कि वे जनसंख्या को बढ़ा रहे हैं। ऐसे में पढ़ी-लिखी महिलाएं अपने परिवार को समझा कर इसकी रोकथाम में सहयोग कर सकती हैं।

हालांकि इसे जिस प्रकार से कहा गया वह बेहद निर्लज्ज तरीका ही कहा जाएगा। कितना अच्छा होता अगर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शिष्ट भाषा में ऐसा संदेश देते जोकि सिर्फ बिहार ही नहीं अपितु पूरे देश के लोगों के लिए स्वीकार्य होता। लेकिन आज के समय एक आम आदमी से लेकर खास आदमी तक की भाषा बेहद गंवार और सोशल मीडिया टाइप हो गई है और यही वक्त की सबसे बड़ी विडम्बना है। यह मामला अब राजनीतिक हो गया है, विपक्ष को इसकी निंदा करने और इसके खिलाफ बयान देने का अधिकार है। राजनेताओं को सबक लेना चाहिए कि वे लाखों लोगों के प्रेरक होते हैं, अगर वही ऐसा आचरण पेश करेंगे तो फिर समाज कैसे सही दिशा हासिल करेगा। इस मामले की अनदेखी नहीं की जा सकती। 

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